
कठोपनिषद् (1.3.14)/ Kathopnishad (1.3.14) उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत। ’’संस्कृत में कठ का अर्थ होता है, पीड़ा। अतः कठोपनिषद् पीड़ा हरने अथवा मोक्ष प्राप्त करने हेतु उपदेश है, कुछ विद्वान इसे कथा (कहानी) उपनिषद भी कहते हैं। कठोपनिषद् अपने आप में एक अद्वितीय ग्रन्थ है। जो कृष्ण यजुर्वेद शाखा का अत्यंत महत्वपूर्ण उपनिषद है। ऐसी मान्यता है कि, इसकी रचना महात्मा बुध्द के आने से पूर्व आठवीं शताब्दी के लगभग की गई होगी। कठोपनिषद् को आध्यात्मिक जीवन जीने एवं मोक्ष प्राप्ति हेतु सबसे उपयुक्त ग्रन्थ माना गया है। कठोपनिषद् वैदिक साहित्य में कृष्ण यजुर्वेद की कठ शाखा के एक अंश के रूप में प्राप्त होता है। मनुष्य के मन में ’मृत्यु एवं पुनर्जन्म के बाद जीवन की गति’ के विषय में जो प्रश्न उठते हैं, इसके संबंध में ’कठ’ उपनिषद् में यमराज-नचिकेता-संवाद के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। कृष्ण यजुर्वेद शाखा का उपनिषद अत्यंत महत्वपू...