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Lord Krishna says in the Bhagavad-gita – “Among the birds, I am Garuda.” भगवान श्री कृष्ण का पंछी प्रेम love for birds of lord shri krishna

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मोर मुकुट धारी भगवान श्री कृष्ण का प्रिय पक्षी मोर (बारनवापारा वन्यजीव अभ्यारण्य महासमुंद छत्तीसगढ़) Lord Krishna's (crowned by Peacock feathers)  favourite bird Peafowl  (Barnawapara, Wildlife Sanctuary Mahasamund Chhattisgarh, India)  पक्षी मोर  (कान्हा राष्ट्रीय उद्यान, मध्य प्रदेश)  Peafowl  (Kanha National Park, Madhya pradesh, India)     भगवान कृष्ण कि हर छवि में आपने मोर पंख जरूर देखा होगा, इसलिए श्रीकृष्ण को "मोर मुकुट धारी" भी कहते हैं। संस्कृत साहित्य के विभिन्न शास्त्रों में भगवान श्री कृष्ण के साथ दो पक्षियों का उल्लेख विशेष रूप से हुआ है। जिसमें मोर(भारतीय पीफाउल) एवं गरुड़ (सरपनटाइन ईगल) शामिल हैं, भगवान श्री कृष्ण की छबियों में ये दोनों पक्षी विशेष रुप से दिखाई देते हैं।यह संयोग ही है कि भगवान श्री कृष्ण द्वारा कालिया नाग का मर्दन किया गया था, और ये दोनों पक्षी भी सर्पभक्षी है। श्रीमद्भागवत गीता के अध्याय 10 श्लोक 30 में भगवान श्री कृष्ण स्वयं कहते हैं। प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानां कालः कलयतामहम्। मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्...

न चाहूं मान / राम प्रसाद बिस्मिल

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न चाहूँ मान दुनिया में, न चाहूँ स्वर्ग को जानामुझे वर दे यही माता, रहूँ भारत पे दीवाना करुँ मैं कौम की सेवा, पडे़ चाहे करोड़ों दुख अगर फ़िर जन्म लूँ आकर, तो भारत में ही हो आना लगा रहे प्रेम हिन्दी में, पढूँ हिन्दी लिखुँ हिन्दी चलन हिन्दी चलूँ, हिन्दी पहरना, ओढना खाना भवन में रोशनी मेरे रहे, हिन्दी चिरागों की स्वदेशी ही रहे बाजा, बजाना, राग का गाना लगें इस देश के ही अर्थ मेरे धर्म, विद्या, धन करुँ मैं प्राण तक अर्पण, यही प्रण सत्य है ठाना नहीं कुछ गैर-मुमकिन है, जो चाहो दिल से "बिस्मिल" तुम उठा लो देश हाथों पर न समझो अपना बेगाना -राम प्रसाद बिस्मिल

महादेवी वर्मा की कविता "अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी "

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   अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी आँधी आई जोर शोर से,डालें टूटी हैं झकोर से। उड़ा घोंसला अंडे फूटे, किससे दुख की बात कहेगी! अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी? हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं बेचारी को। पर वो चीं-चीं कर्राती है घर में तो वो नहीं रहेगी! घर में पेड़ कहाँ से लाएँ, कैसे यह घोंसला बनाएँ! कैसे फूटे अंडे जोड़े, किससे यह सब बात कहेगी! अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी? महादेवी वर्मा ब्राह्मणी  स्टर्लिंग मैना का बचाव (ग्राम कुम्हारी, महासमुंद, छत्तीसगढ़) Rescue of  Brahminy starling  mynah (Villege Kumhari, Mahasamund, Chhatishgrah) पनकौवा घोंसला  बनाने की तैयारी में (बॉटनिकल गार्डन, रायपुर, छत्तीसगढ़) Indian cormorent carrieng twigs for correcting nest (Botnical Garden, Raipur , Chhatishgrah) where will this bird will live The storm came with a loud uproar, The branches are broken with a tremor.  Nest blown, eggs cracked,  To whom the bird would express her sorrow?  Where will this bird live now?  We opened the cupboard,  Calling the poor Bird Bu...

चरकसंहिता/Charaksamhita

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लक्षणम् मनस, ज्ञानस्य आभावः भाव एव वा। सति हि आत्म इन्द्रियर्थानां सन्निकर्षण एवं वर्तने।।                           आयुर्वेद का मतलब होता है ’’जीवन विज्ञान’’। चरक संहिता में जीवन को चार प्रकार का बताया गया है - (1) सुख (2) दुख (3) हित (4) अहित। मानसिक एवं शारीरिक व्याधियों से मुक्त जीवन ’’सुखम-आयु’’ कहलाती है। यह जोश, क्षमताओं, ऊर्जा, जीवन शक्ति, गतिविधियों, ज्ञान, सफलताओं एवं आनंद से भरी होती है। इसका ठीक विपरीत होता है ’’असूखम-आयु’’ अथवा ’’दुखम आयु’’। ’’हितम-आयु’’ ऐसे व्यक्ति का जीवन है, जो सभी की सहायता के लिए तत्पर रहता है, साथ ही वह सत्यवादी, शांत, आत्म संयमित, चोरी न करने वाला, सोच-समझकर कदम उठाने वाला, पुण्य करने वाला, बिना किसी विवाद के धर्म, धन एवं काम प्राप्त करने वाला, ज्ञान बोध करने वाला, परोपकारी एवं शांति का समर्थक होता है। इसके विपरीत व्यक्ति ’’अहितम-आयु ’’ जीता है। चरकसंहिता में आयुर्वेद का उद्देश्य उपरोक्त चार प्रकार के जीवन में से किस प्रकार का जीवन जिया जाए सिखाना है।         ...

वाल्मीकि रामायण का प्रथम श्लोक first Verse of Valmiki Ramayana

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  मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम: शास्वती समा। यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधी: काममोहितम्।।                  आदिकवि महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित महाकाव्य "रामायण भगवान" राम के चरित्र का उत्तम एवं वृहद विवरण है। यह बुराई पर अच्छाई के विजय तथा भगवान राम का लंका के राजा तथा प्रकंड विद्वान रावण के युध्द की कहानी है। हिंदू पवित्र महाकाव्य रामायण के पहले छंद (श्लोक) में सारस क्रेन (एंटीगोन एंटीगोन) की एक जोड़ी के बारे में एक कहानी है। यह सारस क्रेन भारतीय उपमहाद्वीप, दक्षिण पूर्व एशिया और ऑस्ट्रेलिया के कुछ हिस्सों में पाई जाने वाली एक बड़ी गैर-प्रवासी क्रेन है। उड़ने वाले पक्षियों में ये सबसे ऊंचे (tallest) होते है, खड़े होने पर इनकी ऊंचाई 1.6 मीटर से 1.9 मीटर (लगभग 6 फीट) तक जो एक इंसान के समान होती है। जब महान  ऋषि वाल्मीकि (कवि और पवित्र श्लोकों के लेखक) नदी के किनारे स्नान करते वक्त सारस के प्रेमालाप प्रदर्शन को देख रहे थे, तो अचानक कहीं से एक तीर आकर नर को लगा और उसकी मृत्यु हो गई मादा शोक में विलाप करने लगी। सारस पक्षी को प्रेमालाप के शानदार प्...

महामृत्युंजय मंत्र Mahamrityunjay Mantra

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ऊँ त्र्यंबकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्धनम्। उर्वारूकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षीय माम्मृतात्।।           "यह महामृत्युंजय मंत्र जो मृत्यु/कष्ट/दुख को हरने वाला मंत्र माना गया है। यह ऋग्वेद (RV7.59.12) से लिया गया है, और पुनः यजुर्वेद (TS1.8.6.1) में उल्लेख है। इस श्लोक/प्रार्थना का उच्चारण अथवा इसे सुनना मन को शांति प्रदान करने वाला होता है।" हिन्दी भावार्थ:-           ऊँ! तीन नेत्रों वाले भगवान शिव जो समस्त संसार के पालनहार हैं, उनकी हम अराधना करते हैं। विश्व में सुरभि फैलाने वाले भगवान शिव मृत्यु से मुक्ति दिलाकर हमे मोक्ष की तरफ ले जाएं। Prayer of Lord Shiva/ Victory over death prayer Om Tryambakam Yajamahe Sugandhim Pushti-Vardhanam  Urvarukamiva Bandhanan Mrityormukshiya Mamritat        “This Mahamrityunjay Mantra or Great death conquering mantra is a verse of Rigveda (Rv 7.59.12) and is recurs in yajurveda (Ts 1.8.6.1). Chanting of this shloka is believed to extricate suffering, ailment, anguish or troubl...
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  कठोपनिषद् (1.3.14)/ Kathopnishad (1.3.14)                                           उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।   ’’संस्कृत में कठ का अर्थ होता है, पीड़ा। अतः कठोपनिषद् पीड़ा हरने अथवा मोक्ष प्राप्त करने हेतु उपदेश है, कुछ विद्वान इसे कथा (कहानी) उपनिषद भी कहते हैं। कठोपनिषद् अपने आप में एक अद्वितीय ग्रन्थ है। जो कृष्ण यजुर्वेद शाखा का अत्यंत महत्वपूर्ण उपनिषद है। ऐसी मान्यता है कि, इसकी रचना महात्मा बुध्द के आने से पूर्व आठवीं शताब्दी के लगभग की गई होगी। कठोपनिषद् को आध्यात्मिक जीवन जीने एवं मोक्ष प्राप्ति हेतु सबसे उपयुक्त ग्रन्थ माना गया है।  कठोपनिषद् वैदिक साहित्य में कृष्ण यजुर्वेद की कठ शाखा के एक अंश के रूप में प्राप्त होता है। मनुष्य के मन में ’मृत्यु एवं पुनर्जन्म के बाद जीवन की गति’ के विषय में जो प्रश्न उठते हैं, इसके संबंध में ’कठ’ उपनिषद् में यमराज-नचिकेता-संवाद के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। कृष्ण यजुर्वेद शाखा का उपनिषद अत्यंत महत्वपू...